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गुरुवार, फ़रवरी 27, 2020
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समुद्र के नीचे भगवान विष्णु का 5000 साल पुराना मंदिर, द्वापरयुग से जुड़ा है इसका रहस्य
हम बात कर रहे हैं दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया की। माना जाता है कि 13वीं और 16वीं सदी में मुस्लिमों में आने से पहले इंडोनेशिया हिंदू राष्ट्र हुआ करता था। इंडोनेशिया के जावा में एक के बढ़कर एक हिंदू मंदिर देखने को मिल जाएंगे और उतने ही बाकी द्वीपों पर भी। लेकिन बाली में सबसे ज्यादा और बेहद अनोखे मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है पानी के अंदर मौजूद भगवान विष्णु का मंदिर (Underwater Temple in Indonesia), जो अपने आप में अजूबा है। ये उत्तर पश्चिम बाली के पेमुतेरान बीच में समुद्र की सतह से 90 फीट नीचे मौजूद है।
कई ऑनलाइन रिसर्च के मुताबिक, ये मंदिर 5000 साल पुराना है।
इसकी स्थिति बताती है कि इस जगह पर समुद्र का स्तर किस तेजी से बढ़ा है। हालांकि, बाद में कई ऑनलाइन रिसर्च में ये भी सामने आया कि मंदिर को लेकर किए गए सारे दावे बिल्कुल झूठे निकले। असल में मंदिर हाल के एक आर्टिफिशियल रीफ क्रिएशन प्रोजेक्ट का हिस्सा था। समुद्र की तल पर वर्टिकल स्ट्रक्चर खड़े कर ये मरीन हैबिटेट बनाया गया था।
सी रोवर डाइव सेन्टर के कंस्ट्रक्शन के लिए इंटरनेशनल डेवलपमेंट के लिए ऑस्ट्रेलियन एजेंसी की ओर से फंडिंग की गई थी। ये डाइव के लिए इंसान की बनाई हुई रीफ है, जिसे लोकल न्यू स्कूबा डाइविंग स्पॉट करते हैं। ग्रुप ने इस मंदिर को तमन पुरा या टेम्पल गार्डन नाम दिया था।
इंडोनेशिया की राजधानी जर्काता के कुछ इंटरनेट पोर्टल्स और टीवी स्टेशन ने इस हैरतअंगेज स्थान की खबरें दिखानी शुरू कर दी। इतना ही नहीं इस जगह को मंदिर का प्राचीन खंडहर होने का दावा करने लगे। जब इसके बारे में जानकारी इंडोनेशियन मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर और टूरिज्म के पास पहुंचीं, तो एक्वेटिक आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर सूर्या हेल्मी ने इसके बारे में जानकारी पब्लिश कराकर अफवाह दूर करने की कोशिश की।
प्राचीन नजारों के साथ डाइविंग का मजा
पहली साइट पर समुद्र की सतह पर दर्जनों की संख्या में बड़े स्टोन स्टैचू बने हैं और 4 मीटर लंबा टेम्पल गेटवे भी है। हालांकि, ज्यादा मूर्तियां 15 मीटर दूर दूसरी साइट पर मौजूद हैं। यहां पर्यटक प्राचीन नजारों के साथ डाइविंग का भी मजा ले सकते हैं। पानी के नीचे हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़े स्टैचू हैं।
नोट: हमारा उद्देश्य किसी भी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। यह लेख लोक मान्यताओं और पाठकों की रूचि के आधार पर लिखा गया है।
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