चीन को करारा जवाब देने के लिए भारत सरकार ने चीनी सामान के आयात पर कसा शिकंजा

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चीन को करारा जवाब देने के लिए भारत सरकार ने चीनी सामान के आयात पर कसा शिकंजा

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल (Modi Government 2.0) में चीनी निवेश (Chinese Investment) और चीनी सामान (Chinese Product) के आयात पर धीरे धीरे भारत सरकार (Govt of India) ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. जानिए कैसे.

 गलवान घाटी (Galwan Valley) में हुई भारत-चीन (India China) की झड़प दोनों देशों के संबंधों को बिगाड़ने वाली एक बड़ी वजह बन गयी है. देश भर में व्यापारी से लेकर आम आदमी भी चीनी सामान (Chinese Products) के बहिष्कार की मांग करने लगा है. देश भर में चीनी समान के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे हैं. लेकिन सवाल ये भी उठने लगे थे कि आखिर मोदी सरकार ने चीन को करारा जवाब देने के लिए रणनीति क्यों नहीं बना रही. सरकार क्यों हर मुश्किल की घड़ी में चीन के खिलाफ सिर्फ बातचीत कर के खामोश हो जाती है. आखिर सही स्थिति क्या है. एक ओर तो गलवान घाटी से अब खबरें छनकर आने लगीं है कि भारतीय सेना (Indian Army) ने चीनी सेना का भी खासा नुकसान किया है. साथ ही अब भी हमारी सेना अपनी पोजिशन से पीछे नहीं हट रही. अब रही बात व्यापार और निवेश की, तो हम आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि कैसे मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चीनी निवेश और चीनी सामान के आयात पर धीरे धीरे भारत सरकार ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया था.

1) भारत ने RCEP-REGIONAL COMPREHENSIVE ECONOMIC PARTNERSHIP से बाहर निकला. इसमें चीन समेत ASEAN के सभी देश शामिल थे. इससे भारतीय उद्योगों को चीन के बहुत ही सस्ते सामान के आयात से सुरक्षा मिलेगी. इसमें कई संवेदनशील क्षेत्र शामिल हैं जैसे, कृषि, दुग्ध उत्पाद और छोटे, सूक्ष्म & लघु उद्योग.
2) गैर जरूरी आयात पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई. 2020 के बजट मे 89 चीजों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ायी गयी जिसमें जूता, खिलौने, फर्नीचर और प्रेशर वेसल्स शामिल हैं.
3) पिछले साल ही सरकार ने 13 वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध/रोक लगाया था जिसमें चीन से आयात होने वाली कई वस्तुएं शामिल थीं.



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सवाल ये भी उठने लगे थे कि आखिर मोदी सरकार ने चीन को करारा जवाब देने के लिए रणनीति क्यों नहीं बना रही,



नई दिल्ली. गलवान घाटी (Galwan Valley) में हुई भारत-चीन (India China) की झड़प दोनों देशों के संबंधों को बिगाड़ने वाली एक बड़ी वजह बन गयी है. देश भर में व्यापारी से लेकर आम आदमी भी चीनी सामान (Chinese Products) के बहिष्कार की मांग करने लगा है. देश भर में चीनी समान के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे हैं. लेकिन सवाल ये भी उठने लगे थे कि आखिर मोदी सरकार ने चीन को करारा जवाब देने के लिए रणनीति क्यों नहीं बना रही. सरकार क्यों हर मुश्किल की घड़ी में चीन के खिलाफ सिर्फ बातचीत कर के खामोश हो जाती है. आखिर सही स्थिति क्या है. एक ओर तो गलवान घाटी से अब खबरें छनकर आने लगीं है कि भारतीय सेना (Indian Army) ने चीनी सेना का भी खासा नुकसान किया है. साथ ही अब भी हमारी सेना अपनी पोजिशन से पीछे नहीं हट रही. अब रही बात व्यापार और निवेश की, तो हम आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि कैसे मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चीनी निवेश और चीनी सामान के आयात पर धीरे धीरे भारत सरकार ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया था.

1) भारत ने RCEP-REGIONAL COMPREHENSIVE ECONOMIC PARTNERSHIP से बाहर निकला. इसमें चीन समेत ASEAN के सभी देश शामिल थे. इससे भारतीय उद्योगों को चीन के बहुत ही सस्ते सामान के आयात से सुरक्षा मिलेगी. इसमें कई संवेदनशील क्षेत्र शामिल हैं जैसे, कृषि, दुग्ध उत्पाद और छोटे, सूक्ष्म & लघु उद्योग.
2) गैर जरूरी आयात पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई. 2020 के बजट मे 89 चीजों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ायी गयी जिसमें जूता, खिलौने, फर्नीचर और प्रेशर वेसल्स शामिल हैं.
3) पिछले साल ही सरकार ने 13 वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध/रोक लगाया था जिसमें चीन से आयात होने वाली कई वस्तुएं शामिल थीं.
*12 जून 2020 को टायर के आयात पर रोक लगा दी. इसमें साइकिल, मोटर साइकिल, कोर, वस और लॉरी के टायरों पर रोक लगाते हुए आदेश दिया कि बिना डीजीएफटी की इजाजत के ये भारत में आयात नहीं हो पाएंगी.*डीजीएफटी ने 31 अगस्त 2019 को अगरबत्ती के आयात पर भी रोक लगा दी थी.
* अगरबत्ती के लिए जरूरी सामान यानी बांस के आयात पर 10 से 25 फीसदी कस्टम ड्यूटी बढ़ायी गयी.
* चीन से आयात होने वाले दूध और दूध के उत्पादों पर 23 अप्रैल 2019 को ही रोक लगा दी गयी थी.
4) 17 अप्रैल 2020 ने विदेशी पूंजी निवेश करने वाले उद्योगों के लिए नियम तय कर दिए. कुछ विदेशी निवेशों के लिए सरकार की अनुमति अनिवार्य कर दी गयी. जाहिर है इसका निशाना चीन ही था.
* भारत के साथ लगी जमीनी सीमा वाले सभी देशों पर ये नियम लागू है.
*निवेश का लाभ उठाने वाले पूंजीपति या तो भारत की सीमा से लगे उन देशों में रहते हों या फिर उऩ देशों के निवासी हैं.
5) एंटी डंपिंग ड्यूटी और सेफगार्ड ड्यूटी लगायी गयी
* डीजीएफटी अब तक एंटी डंपिंग की जांच शुरू करने में 43 दिन लेता था लेकिन इस साल ये जांच 33 दिन में शुरू हो रही है. जांच पूरी करने में 234 दिन लग रहे हैं जबकि पहले 234 दिन लगते थे.
* 2020 मे चीन से आय़ात होने वाली कई वस्तुओं पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगा दी गयी है.
* इसमें स्टेनलेस स्टील, लाइलॉन टायर कोर्ड फैब्रिक, इलेक्ट्रॉनिक कैल्कुलेटर, सोडियम साइट्रेट, शीट ग्लास, सोडियम नाइट्रेट पर पांच सालों के लिए ये एडीडी ड्यूटी लगायी गयी.
*इसके अलावा पाइराजोलोन, सीपीसीआर और डिजिटल ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस इस लिस्ट में शामिल हैं.
*डीजीटीआर नें सिंगल मोड ऑप्टिकल फाइबर पर सेफगार्ड ड्यूटी लगायी. फाइनल एडीडी लगायी गयी सिप्रोफ्लॉक्सासिन एचसीएल, एनीलीन, एल्यूमिनियम और जिंक कोटेड फ्लैट प्रोडक्ट, कॉपर अलॉय फ्लैट रोल्ड प्रोडक्ट के आयात पर जांच चल ही रही है.
6) पहचान की गयीं 371 वस्तुओं के आयात पर शिकंजा कसने के लिए नियमों में तकनीकी पेंचों की तलाश की गयी. लगभग 150 आयात होने वाली वस्तुओं पर सवाल जवाब होने के बाद रोक लगी तो माना जा रहा है कि इससे 47 बिलियन डॉलर के आयात पर असर पड़ा है.
*पिछले एक साल में 50 से ज्यादा सामानों मे क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर और दूसरे तकनीकि नियम जो जारी हुए हैं उनमे इलेक्टॉनिक गुड्स, खिलौने, एसी, साइकल के पुर्जे, केमिकल्स, प्रेशर कुकर, स्टील से बनी चीजें, और केबल जैसे इलेक्ट्रॉनिक आइटम शामिल हैं.
7) संचार मंत्रालय ने टेलीकॉम क्षेत्र में 4जी और उसके ऊपर की तकनीकि की बिडिंग से चीनी कंपनियों को बाहर रखने का फैसला ले लिया है. साथ ही प्राइवेट टेलेकॉम कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि वे चीन के सामान पर अपनी निर्भरता धीरे धीरे कम करें.
8) रेल मंत्रालय के भी चीन के साथ किए कुछ करारों को रद्द कर उन्हें बड़ी चपत लगायी है.
9) महाराष्ट्र जैसे राज्य सरकारों ने भी चीन के साथ समझौते रद्द कर चीन को चोट पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है.
चीन भी जानता है कि वैश्विक मंदी के दौर में भारत जैसा बड़ा बाजार मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा इसलिए उन्होंने अपने कदम थोड़े वापस खींचे हैं. कोरोना संकट के बाद चीन से सामान समेट रही दुनिया के कई बड़ी कंपनियों ने भारत में निवेश के लिए कदम बढ़ाएं हैं. लेकिन सरकारी सूत्र बताते हैं कि अब भरोसे वाली बात नहीं रही. इसलिए एक के बाद एक ऐसे फैसले लिए जाते रहेंगे जिससे भारतीय बाजार में चीनियों की उपस्थिति कम से कम होती जाए.

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