तालाब में स्नान करने मात्र से ही खाज खुजली जड़ से खत्म हो जाती है

बुन्देली न्यूज़,
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हजार मुखी हजार मुखी बाबा बैद्यनाथ के दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता 

छतरपुर जिले के नौगांव क्षेत्र के ग्राम अच्चट में जो कि पहले अचलपुर के नाम से जाना जाता था जहां पर सिद्ध पहाड़ी पर स्थित लगभग 11 वीं शताब्दी की 1008 मुखी शिव का मंदिर भक्तों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र बना हुआ है।
इस पवित्र भूमि को तपोभूमि क्षेत्रीय लोगों द्वारा बताई जा रही हैं।
एक हजार आठ मुख वाले भगवान शिव के दरबार में इन दिनों सावन मास में दूर-दूर से भक्त पहुंच कर अपनी सुख समृद्धि की कामना कर रहे हैं फिलहाल इस वर्ष कोरोनावायरस के चलते बाहर से भक्त कम ही आ पा रहे हैं लेकिन क्षेत्रीय भक्त पूरी आस्था और विश्वास के साथ भगवान शिव के दर्शन करने आ रहे हैं इस इस पवित्र स्थल पर सच्चे मन से आने पर भगवान शिव सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

पास में स्थित है चमत्कारी तालाब

यहां का तालाब लोगों की खाज खुजली खत्म करने के लिए मशहूर है इस तालाब में नहाने से सभी तरह के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं रविवार और बुधवार को बहुत दूर-दूर से लोग खाज खुजली वाले मरे आते हैं और तालाब में स्नान करने मात्र से ही खाज खुजली जड़ से खत्म हो जाती है

बाल हनुमान की लेटी मुद्रा में मूर्ति आकर्षण का केंद्र है

वैसे कहे तो यहां प्राचीन चंदेली मूर्तियों का अपार उद्गम है जिसमें गणेश जी हजार मुखी पंचमुखी शिवलिंग बुद्ध भगवान महावीर चंडी माता सहित मां अंजनी की बाल हनुमान सहित लेटी मुद्रा में मूर्तियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

पास में ही स्थित है चतुर्भुज भगवान मंदिर व पिसनाई मठ

यहां पर स्थिति चतुर्भुज भगवान का मंदिर है जो कि खजुराहो के मतंगेश्वर मंदिर से पूर्व 11 वीं शताब्दी का बताया जा रहा है तथा खजुराहो की तर्ज पर एवं उसी पत्थर से मूर्ति व मंदिर का ढांचा निर्मित है पास में पिसनाई मठ है जो आज बिना देखरेख के बावजूद भी क्षतिग्रस्त होकर खड़ा है
कहने को तो यह पूरा गांव पुरातत्व विभाग के दायरे में आता है लेकिन यहां के लोगों और मंदिर के पुजारियों की माने तो विभाग द्वारा ना तो मूर्तियों व मंदिरों के रखरखाव और टूरिज्म बढ़ाने के लिए कोई कदम  उठाए जा रहे हैं  और ना ही स्थानीय लोगों द्वारा  इनका रखरखाव करने दिया जा रहा है विभाग की उदासीनता के चलते किसी भी मंदिर में शासन द्वारा कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। ना ही मंदिरों का रखरखाव किया जा रहा है ऐसे में आने वाले समय में यह दुर्लभ मूर्तियां और मंदिर विभाग के उदासीनता की भेंट चड जायेंगे।


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