RTI में लापरवाही करने पर अफसरों का खराब होगा CR, अब हर हाल में देनी होगी जानकारी,एक्ट में क्या संशोधन किया गया? उसकी सम्पूर्ण जानकारी

बुन्देली न्यूज़,
By -
0


भोपाल. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में आरटीआई (RTI) के तहत जानकारी मांगने वाले लोगों के लिए यह अच्छी खबर है. अभी तक सूचना के अधिकार के तहत मांगी जाने वाली जानकारी को लेकर संबंधित विभाग के अधिकारी कर्मचारी आनाकानी करते थे. कई जानकारियों को छुपाया जाता था. ऐसे में मूल जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता तक नहीं पहुंच पाती थी. हालांकि अब ऐसा होने पर अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. अब किसी भी हाल में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी को देना ही होगा.आरटीआई प्रकरणों का किसी भी हालत में निराकरण करना होगा. ऐसा इसलिए संभव हो गया है. क्योंकि अब आरटीआई में लापरवाही बरतने वाले अधिकारी कर्मचारियों का सर्विस रिकॉर्ड खराब होगा. इसके लिए राज्य सूचना आयोग ने निर्देश भी जारी कर दिए हैं. यानी सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने में आनाकानी करने वाले अधिकारी कर्मचारियों पर अब राज्य सूचना आयोग जुर्माना को उनकी सर्विस बुक में दर्ज करवा रहा है. आयोग के इस फरमान से प्रशासनिक खेमे में हड़कंप मच गया है. आयोग ने यह सब इसलिए किया ताकि सूचना के अधिकार के तहत प्रकिया से जानकारी आसानी से मिल सके.


यहां से मिल पायेगी जानकारी
हाल ही में मुख्य सूचना आयुक्त एके शुक्ला ने चार प्रकरणों में कुल एक लाख का जुर्माना करने के आदेश के साथ ही दोषी अधिकारियों की सेवा पुस्तिका में उनके जुर्माने की एंट्री करने का आदेश भी जारी किया था. डॉ. आरएल ओसारी सचिव मध्य प्रदेश बीज एवं फार्म विकास निगम तीन अलग अलग प्रकरणों में कुल 75 हज़ार का जुर्माना लगाया गया. वहीं एक और प्रकरण में नवनीत सक्सेना दूध संघ जबलपुर के ऊपर 25 हजार का जुर्माना लगाया गया है. इन सभी प्रकरणों में खास बात ये है कि सभी अधिकारियों की सेवा पुस्तिका में जुर्माने की टिप की एंट्री की जाएगी.


रिटायरमेंट के बाद भी वसूला जाएगा जुर्माना
अगर जुर्माना अधिकारी जमा नही करते हैं, तो मुख्य सूचना आयुक्त ने आदेश दिया है कि जुर्माना रिटायरमेंट में समय वसूला जाएगा. साथ ही जुर्माना नही जमा करने के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई भी की जाएगी. अब आरटीआई जानकारी अब आरटीआई के तहत जानकारी देने के साथ अधिकारियों को जुर्माना भी जमा करना पड़ेगा. जुर्माने में किसी तरीके की रियायत नहीं दी जाएगी. आयोग ने यह सख्त आदेश निकाले हैं कि जुर्माना किसी भी कंडीशन में वसूला जाएगा. इतना ही नहीं उनकी सर्विस बुक में भी इसे दर्ज किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर आयोग कार्यवाही के लिए अनुशंसा भी करेगा.


सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 की धारा 13 और 16 में संशोधन के लिए विधेयक लाया गया है. मूल अधिनियम की धारा-13 में केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की आयु तक (जो भी पहले हो) निर्धारित किया गगयाl.


लेकिन, विधेयक इस प्रावधान को हटाने की बात करता है और केंद्र सरकार को इस पर फैसला लेने की अनुमति देता है. धारा 13 में कहा गया है कि "मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होंगी." लेकिन विधेयक इसे बदलकर सरकार को वेतन तय करने की अनुमति देने का प्रावधान करता है."

मूल अधिनियम की धारा 16 राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों से संबंधित है. यह राज्य-स्तरीय मुख्या सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों के लिए पांच साल (या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो) के लिए कार्यकाल निर्धारित करता है.

संशोधन का प्रस्ताव है कि ये नियुक्तियां “केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की गई अवधि” के लिए होनी चाहिए. जबकि मूल अधिनियम राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तों को "चुनाव आयुक्त के समान" और राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन और अन्य शर्तों को राज्य सरकार के मुख्य सचिव के "समान" निर्धारित करता है.

यह संशोधन प्रस्तावित करता है कि वेतन और कार्यकाल की अवधि "केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किए जा सकते हैं."



संशोधनों को यह कहते हुए देखा जा रहा है कि, वास्तव में, मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, वेतन और कार्यकाल की शर्तें सरकार द्वारा केस-टू-केस के आधार पर तय की जा सकती हैं. विपक्ष ने तर्क दिया है कि इससे आरटीआई अधिकारियों की स्वतंत्रता छीन ली जाएगी.

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि विधेयक केंद्रीय सूचना आयुक्त की "स्वतंत्रता के लिए खतरा" है. बहस की शुरुआत करते हुए कांग्रेस नेता शशि थरूर ने विधेयक पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे वापस लेने की मांग की.

विधेयक से आरटीआई ढांचे को कमजोर करने और सीआईसी और सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने तर्क दिया कि इसे किसी भी सार्वजनिक बहस के बिना संसद में लाया गया है. थरूर ने इसे जानबूझकर किया गया परिवर्तन बताया.

थरूर ने कहा, "क्या आप यह संशोधन इसलिए ला रहे हैं क्योंकि एक सूचना आयुक्त ने पीएमओ से प्रधानमंत्री की शैक्षणिक जानकारी मांग ली थी? हर बिल को बिना जांच किए आगे बढ़ाने में क्या जल्दी है? सरकार संसदीय स्थायी समितियों के गठन में देरी क्यों कर रही है?"

इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस, डीएमके और एआईएमआईएम ने भी इसका विरोध किया. बता दें, सरकार ने पिछले साल भी संशोधन पेश करने की कोशिश की थी, लेकिन विपक्ष के विरोध के कारण विधेयक को वापस लेना पड़ा था.


सरकार के बयान में कहा गया है, “इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया और सेंट्रल एंड स्टेट इन्फॉर्मेशन कमीशन की भूमिकाएं अलग-अलग हैं. इसलिए, उनकी स्थिति और सेवा शर्तों को भी उसी हिसाब से तर्कसंगत बनाने की जरूरत है.”


संशोधन विधेयक को पेश करते हुए, राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था, “शायद, तत्कालीन सरकार ने आरटीआई अधिनियम, 2005 को पारित करने की जल्दबाजी में बहुत सी चीजों को नजरअंदाज कर दिया. केंद्रीय सूचना आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा दिया गया है, लेकिन उनके निर्णयों को उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है. यह कैसे संभव है? इसके अलावा, आरटीआई अधिनियम ने सरकार को नियम बनाने की शक्तियां नहीं दीं. हम संशोधन के माध्यम से इन्हें ठीक कर रहे हैं.”


मूल अधिनियम जिस विधेयक से वास्तविकता में आया था, उस पर कार्मिक, जनता की शिकायतें, कानून और न्याय की संसदीय समिति ने चर्चा की थी. इस समिति में अभी के राष्ट्रपति और तब के बीजेपी सदस्य रामनाथ कोविंद, बलवंत आप्टे और राम जेठमलानी शामिल थे.


असल में, मुख्य सूचना आयुक्तों की सैलरी केंद्र सरकार के सचिवों के बराबर प्रस्तावित की गई थी. वहीं, सूचना आयुक्तों की सैलरी केंद्र सरकार के एडिशनल सेक्रेटरी और ज्वॉइंट सेक्रेटरी के बराबर प्रस्तावित की गई थी.


ईएमएस नचीअप्पन की अध्यक्षता में संसदीय समिति ने 2005 में अपनी रिपोर्ट पेश की और कहा, "समिति को लगता है कि सूचना आयुक्तों (बाद में मुख्य सूचना आयुक्त) को मुख्य चुनाव आयुक्त और डिप्टी सूचना आयुक्तों (अब सूचना आयुक्त) को चुनाव आयुक्त के बराबर का दर्जा मिलना चाहिए. इसके लिए समिति क्लॉज में उचित प्रावधान जोड़ने की सलाह देती है."


आरटीआई एक्ट को आजाद भारत के सबसे सफल कानूनों में से एक माना जाता है. इसने आम नागरिकों को सरकारी अधिकारियों से सवाल पूछने का अधिकार और विश्वास दिया है.


अनुमान के मुताबिक, हर साल लगभग 60 लाख आरटीआई दाखिल की जा रही हैं. इसका इस्तेमाल आम नागरिकों के साथ-साथ मीडिया भी करता


     बुन्देली न्यूज़

+919171982882

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!