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सोमवार, दिसंबर 12, 2022
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आयोजन : संस्कृति विभाग एवं खंगार क्षत्रिय समाज के सहयोग से 27 दिसंबर से तीन दिवसीय होगा महोत्सव गढ़कुंडार महोत्सव की तैयारियां शुरू,
टीकमगढ़/निवाड़ी,
अखिल भारतीय खंगार क्षत्रिय समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष कप्तान सिंह सहसारी ने एक प्रेस वार्ता निवाड़ी में आयोजित की जिसमें आगामी तीन दिवसीय 27,28 एवं 29 दिसंबर गढ़ कुंडार महोत्सव महाराजा खेत सिंह खंगार जयंती समारोह के प्रारंभ में वर्ष 2006के तत्तकालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय राजनाथ सिंह जी एवं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह चौहान जी द्वारा सर्वप्रथम महाराजा खेत सिंह खंगार जयंती को सरकार से आयोजित कराने की घोषणा कर तथा गढ़कुंडार दुर्ग के जीर्णोद्धार हेतु 02 करोड़ 45 लाख रूपयों की सौगात देकर खंगार क्षत्रिय समाज को मान सम्मान दिया समाज हमेशा ऋणी रहेगा सहयोगी रहे तत्तकालीन विधायक श्री के के श्रीवास्तव टीकमगढ़ एवं वर्तमान विधायक निवाड़ी श्री अनिल जैन जी के योगदान की सराहना की,, हाल ही में एक ओर सौगात मप्र सरकार ने कक्षा आठवीं की सहायक वाचन में महाराजा खेत सिंह खंगार जी के जीवन परिचय को शामिल कर दी आभार धन्यवाद ज्ञापित समाज की ओर से किया ।
गढ़कुंडार महोत्सव में क्षेत्रवासियों से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित रहकर कार्यक्रम को सफल बनाने की अपील की।
इस वर्ष गढ़ कुंडार महोत्सव के जनक स्वर्गीय उदय सिंह पिंडारी जी के आकस्मिक निधन से समाज को गहरा आघात पहुंचा क्योंकि गढ़ कुंडार महोत्सव को शुरू कराने का श्री अखिल भारतीय खंगार क्षत्रिय समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्वर्गीय श्री उदय सिंह पिंडारी जी को ही जाता है। इस वर्ष गढ़ कुंडार महोत्सव जैसे बट वृक्ष कुछ सीचने का जैसे पुनीत कार्य करने का मौका हम लोगों को मिला गढ़कुंडार महोत्सव को भव्यता दिव्यता प्रदान करने की संपूर्ण कोशिश समाज बंधुओं की तो रहेगी साथ में क्षेत्रवासियों शासन प्रशासन भी भरपूर सहयोग करेगा।
इस वर्ष भी मप्र शासन के संस्कृति संचनालय द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे तथा समाज के द्वारा तीन दिन निशुल्क भोजन भंडारे आयोजित होगे
गढ़कुंडार दुर्ग"
परिचय-
मध्य भारत के मध्य प्रदेश में राज्य के सीमावर्ती जनपद निवाड़ी में मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम में विंध्य पर्वत श्रृंखला की एक पहाड़ी के शिखर पर सुशोभित है "गढ़कुंडार दुर्ग"। यह दुर्ग उत्तर मध्य रेलवे के प्रमुख रेलवे स्टेशन वीरांगना लक्ष्मीबाई नगर (झांसी) से मात्र 75 किलोमीटर दूर सड़क मार्ग पर पश्चिम दिशा मे अवस्थित है।इसका नजदीकी रेलवे स्टेशन निवाड़ी है जो झांसी मानिकपुर रेलवे लाइन पर स्थित है जहां से मात्र 25 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण गढकुंडार दुर्ग स्थित है जो अपने निर्माण कौशल एवं अनुपम संरचना को अपने आप में संजोए है सुरक्षा की दृष्टि से इसकी स्थापना अद्वितीय है क्योंकि इस दुर्ग को 12 किलोमीटर दूर से भी अपनी नग्न आंखों से देखा जा सकता है, किंतु जैसे-जैसे दुर्ग के नजदीक पहुंचते जाते हैं वह दृष्टि से ओझल होता जाता है, इस दुर्ग से जुड़ी लोक कथाएं एवं इतिहास यहां जन-जन में प्रचलित है आम जनमानस से लोकगायन द्वारा सुना जा सकता है।
दुर्ग का नामकरण( व्युत्पत्ति )-
यह दो शब्दों "गढ" एवं "कुंडार" से बना है गढ का शाब्दिक अर्थ किला है, "कुंडार" शब्द में भी दो शब्दों का मिश्रण है कुंड एवं आर, कुंड का आशय जलाशय से है,तथा आर शब्द खंड अर्क(सूर्य ) का बोध कराता है ज्ञातव्य है कि दुर्ग के पास स्थित एक पहाड़ी में आज भी एक जलकुंड है जिसमें 12 मास जल उपलब्ध रहता है पठार के ऊपर अवस्थित होने के बावजूद इसका जल कभी नहीं सूखता है इसी कुंड के निकट ही इस दुर्ग (किला) के निर्माता महाराजा खेत सिंह खंगार ने खंगार क्षत्रिय वंश की कुलदेवी "गजानन माता" का मंदिर निर्माण कराया था जल कुंड एवं गजानन माता के दर्शन के संबंध में इस क्षेत्र में एक जनश्रुति प्रचलित है,कि इस कुंड के जल से स्नान करने के बाद माता गजानन के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करने से सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति तो मिलती ही है साथ में मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। इस कुंड में निरंतर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं इसलिए इसे "सूर्य कुंड" भी कहा जाता है इसी जलकुंड के निकट दुर्ग बनवाये जाने के कारण ही इस दुर्ग का नाम "गढ़कुंडार" पड़ा है।
दुर्ग का इतिहास-
गढ़कुंडार का किला सन 1182 के पूर्व चंदेल शासकों की "जिनागढी" के नाम से एक गढी (out post) चौकी के रूप मे अवस्थित था। जिसमें शिवा परमार चंदेलो के सामंत के रूप में सैनिकों के साथ रहता था। सन 1182 में दिल्ली अधिपति पृथ्वीराज चौहान ने महोबा के चंदेल शासक परमर्दिदेव पर आक्रमण किया था। दोनों राजाओं की सेना के मध्य बैरागढ़ (उरई) नामक स्थान पर भयंकर युद्ध हुआ और उसमे चंदेल राजा परमर्दिदेव का पुत्र ब्रह्मर्दिदेव सेनापति ऊदल,मलखान,अभई आदि वीरगति को प्राप्त हुए, पराजय सुनिश्चित मानकर चंदेल राजा परमर्दिदेव 10000 सैनिको तथा वीर सेनानायक आल्हा के साथ कालिंजर पलायन कर गये तत्पश्चात पृथ्वीराज के समक्ष समर्पण करते हुए संधि प्रस्ताव भेजा,जिसे पृथ्वीराज चौहान ने स्वीकार करते हुए दशार्ण (धसान) नदी के दक्षिण का भाग अपने सेनापति खेत सिंह खंगार को सौंप दिया तथा उत्तर का भाग परमर्दिदेव चंदेल को वापस कर दिया तब पृथ्वीराज चौहान के सेनापति खेत सिंह खंगार ने अपने राज्य की राजधानी "जिनागढ़ी"(वर्तमान गढकुंडार)में बनाई तथा वहां एक सुदृढ़ एवं अद्भुत किले का निर्माण कराया तथा निकटवर्ती पहाड़ी में जल कुंड के निकट अपनी कुलदेवी मां गजानन माता का मंदिर बनवाया, सूर्य कुंड के आधार पर नवनिर्मित दुर्ग का नाम "गढ़कुंडार" दिया गया
सन् 1192 में तराइन युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के पश्चात गढ़कुंडार में खंगार वंश ने खंगार शासनकाल के जुझौति खंड में अपनी स्वतंत्र हिन्दू सत्ता स्थापित कर ली, खंगार शासक जुझौतिखंड में विदेशी आक्रांताओं को मुंह तोड़ जवाब देते रहे
सन् 1202 ई. मे कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर/महोबा में आक्रमण कर दिया जिसमें चंदेल शासक परमर्दिदेव की पराजित होकर मृत्यु हो गई परिणाम स्वरूप खंगार वंश की सत्ता का प्रभाव पुनः महोबा एवं कालिंजर तक हो गया, सन् 1212 में महाराजा खेत सिंह खंगार की मृत्यु के पश्चात 1347 तक 5 पीढ़ियों ने गढ़कुंडार मे शासन किया
सन् 1347 मे मुहम्मद तुगलक द्वारा गढ़कुण्डार के खंगार शासक राजा मान सिंह के समक्ष उनकी कन्या केशर दे से शादी का प्रस्ताव रखा गया। जिसे राजा मानसिंह खंगार ने धर्म ओर क्षत्रित्व की रक्षार्थ अस्वीकार कर दिया, परिणामस्वरूप सन् 1347 में मुहम्मद तुगलक ने गढ़कुंडार पर आक्रमण कर दिया पक्षद्रोहियों के भितरघात से राजा मानसिंह पराजित हुए तथा गढ़कुडार मे खंगार सत्ता का अन्त हो गया
मोहम्मद तुगलक ने सन् 1347 ई. मे गढ़कुडार की सत्ता को बुन्देलो को सौंप दिया सन् 1535 तक गढ़कुंडार बुन्देला वंश की राजधानी रहा,और सन् 1535-39 के मध्य बुन्देलो ने ओरछा को अपनी नयी राजधानी बनाया
बुंदेलों की राजधानी ओरछा स्थानांतरित होने के बाद गढ़कुंडार में विस्मृति की धूल सदियों छाई रही
पुनः वर्ष 2006 में खंगार क्षत्रिय समाज की मांग पर तत्तकालीन मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश श्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयास से किले के रखरखाव मरम्मत एवं पुनरूत्थान का कार्य किया गया जो आज एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की कगार पर है गढ़कुंडार क्षेत्र में गिद्धवासिनी मंदिर, सिंदूर सागर तालाब, माता गजानन मंदिर, सियाजू की रावरे , औषधीय कुंड, ऊंची ऊंची हरी भरी पहाड़ियां प्राकृतिक वातावरण आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं जो दिनों दिन पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं यहां प्रत्येक वर्ष महाराजा खेत सिंह खंगार की जयंती पर 27, 28 एवं 29 दिसंबर को गढ़कुंडार महोत्सव एवं मेला का आयोजन मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति संचालनालय एवं जिला प्रशासन के सहयोग द्वारा कराया जाता है। जहां संपूर्ण भारत वर्ष से महाराजा खेत सिंह खंगार के वंशज एवं क्षेत्रीय जनमानस एकत्रित होकर गौरवशाली इतिहास से परिचित होकर गौरवान्वित होते हैं,वही देशी विदेशी पर्यटक का आना जाना लगा रहता है जो महोत्सव की शोभा बढ़ाते है
विरासत-
यहां आज भी विंध्य पर्वत की सुरम्य श्रृंखलाओं के मध्य प्राकृतिक छटा, सुंदरता, बिखरी पड़ी है जगह-जगह पुरातात्विक महत्व के स्थान एंव चिन्ह परिलक्षित है सिंदूर सागर तालाब की सीढ़ियों मे हिन्दू संस्कृति के अवशेष सती चीरे /जौहर के स्मृति चिन्ह बिछे पड़े है सिंदूर सागर तालाब का विकास कर नौकायन, जलविहार के लिए उपयोगी बनाकर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।
लोक संस्कृति, लोक गायन एवं वादन,परंपराओं, रहन-सहन, खान-पान जैसी समृद्ध विरासत की झलक गढकुंडार में दिखाई पड़ती है
यहां के विभिन्न पर्व (त्योहारों)जैसे मामुलिया, झिंझिंया,टेसू,नवरात्रि,होली फाग, दीवाली नृत्य नारे सुआटा,महालक्ष्मी पूजन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत है गढ़कुंडार मेले पर आयोजित कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है देश के लाखो खंगार क्षत्रियो की आस्था एवं अस्मिता इस दुर्ग से जुड़ी होने के साथ साथ प्रकृति प्रेमी, साहित्यकार, पर्यटकों का आना जाना वर्ष भर लगा रहता है
आज भी देश के कोने-कोने से खंगार क्षत्रिय वंशज एवं क्षेत्रीय जन मानस अपने विभिन्न हिन्दू संस्कारों के संपन्न कराने के लिए कुलदेवी मां गजानन की शरण में आते हैं, तथा दुर्ग की छाया में अपने अस्तित्व की सुखद अनुभूति प्राप्त करते हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कप्तान सिंह सहसारी जी ने भारत सरकार से पत्राचार कर निवेदन किया है कि गढ़कुंडार के अभेद दुर्ग के संरक्षण, संवर्धन एवं पर्यटन हेतु हेरिटेज स्थल के रूप में विकसित करने की कृपा करे।
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