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श्रीमद् भागवत क था का सातवां दिवससुदामा चरित्र का किया गया वर्णन, संगीतमय कथा में श्रोताओं ने किया नृत्य

श्रीमद् भागवत क था का सातवां दिवस
सुदामा चरित्र का किया गया वर्णन, संगीतमय कथा में श्रोताओं ने किया नृत्य,
टीकमगढ़.
नगर के विनायक पुरम स्थित लोकेश्वर महादेव मंदिर पर सातवां दिवस श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। जराशंद्र और भीम युद्ध के बारे में जानकारी दी गई। इसके बाद सुदामा चरित्र का वर्णन किया गया।   कथा में श्रोताओं ने जमकर नृत्य किया। कथा के यजमान पूर्व मंत्री राहुल सिंह लोधी और जिला पंचायत अध्यक्ष उमिता सिंह लोधी रही। 
कथा वाचक यशोदा नंदन संजय कृष्ण शास्त्री ने सातवें दिन की कथा में कृष्ण के अलग अलग लीलाओं का वर्णन किया। मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मा देवकी को वापस देना सुभद्रा हरण एवं सुदामा चरित्र का वर्णन, मित्रता कैसे निभाई जाती है यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा से समझ सकते हैं।                                  
कथा वाचक ने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष आदि प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया। सुदामा जितेंद्रिय एवं भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते। गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं। उनसे जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राम्हण आया है। कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते। उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सिंघासन पर बैठाकर कृष्ण सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं लेकिन सुदामा अपनी घास फ ूंस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं। अगले प्रसंग में शुकदेव ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई। जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया।
विगत सात दिनों तक भगवान कृष्ण के वात्सल्य प्रेम, असीम प्रेम के अलावा उनके द्वारा किए गए विभिन्न लीलाओं का वर्णन कर वर्तमान समय में समाज में व्याप्त अत्याचार, अनाचार, कटुता, व्यभिचार को दूर कर सुंदर समाज निर्माण के लिए युवाओं को प्रेरित किया। इस धार्मिक अनुष्ठान के सातवें एवं अंतिम दिन भगवान कृष्ण के सर्वोपरी लीला रास लीला, मथुरा गमन, दुष्ट कंस राजा के अत्याचार से मुक्ति के लिए कंसबध, कुबजा उद्धार, रुक्मणी विवाह, शिशुपाल वध एवं सुदामा चरित्र का वर्णन कर लोगों को भक्तिरस में डुबो दिया। इस दौरान भजन गायन ने उपस्थित लोगों को ताल एवं धुन पर नृत्य करने के लिए विवश कर दिया। कथा वाचक ने सुंदर समाज निर्माण के लिए गीता से कई उपदेश के माध्यम अपने को उस अनुरूप आचरण करने कहा जो काम प्रेम के माध्यम से संभव है, वह हिंसा से संभव नहीं हो सकता है। समाज में कुछ लोग ही अच्छे कर्मों द्वारा सदैव चिर स्मरणीय होता है। इतिहास इसका साक्षी है। लोगों ने रातभर इस संगीतमयी भागवत कथा का आनंद उठाया। इस सात दिवसीय भागवत कथा में आस पास गांव के अलावा दूर दराज से काफ ी संख्या में महिला पुरूष भक्तों ने इस कथा का आनंद उठाया। सात दिनों तक इस कथा में पुरा वातावरण भक्तिमय रहा।

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